ISBN: 9788181430458
Language: Hindi
Publisher: Vani Prakashan
No. of Pages: 100
रेणु के पत्र अधिकतर इतिहास के पिछड़े हुए पत्र हैं जिनकी व्यवहार पद्धति और भाषा अपनी ही है। अपनी ही ज़िन्दगी और अपने ही परिवेश से परिचालित, लेकिन जिस संकट को, जिस दर्द, दुखान्तकी और तनाव को वे धारण करते हैं वह आधुनिक है। रेणु की कहानियाँ लोगो की मानसिक बनावट के रूप में भाषा को ग्रहण कारती हैं। इन कहानियों की भाषा ज़िन्दगी का माहौल लेकर पूरा सन्दर्भ बनती है। रेणु के रचनाकार में इतिहास बोध और व्यक्तिबोध अपनी प्रखरता में विद्यमान थे जिनकी परिणति मानवीय बोध में होती है। रेणु की कहानियाँ अपने अन्त में बन्द नही होतीं, एक बार फिर से शुरू होती हैं कथ्य की नाटकीयता को शिल्प की संभावनाओं में प्रतिफलित करते हुए।