ISBN: 9788181438256
Language: Hindi
Publisher: Vani Prakashan
No. of Pages: 62
सांप्रदायिकता नफ़रत कि वजह से होने वाले दंगे हमरे देश में कोई नई बात नही। इन दंगों कि वजह से मिले मानसिक आघात के नियमितता के कारण ही शायद हमारा समाज सब मिलाकर धीरे-धीरे इन सब घटनाओं की तरफ से संवेदनहीन-सा होता जा रहा है। ‘सुमन और सना’ एक कोशिश है इस मुद्दे से जुड़े इंसानियत कि तड़प और तकलीफ के पहल पर ध्यान केन्द्रित करने की। नाटक दंगे के शिकार उन लोगों के बारे में है, जिन पर आक्रमण हुआ और जिन लोगों को अपने घरों को छोड़कर भग्न पड़ा। यह बिना किसी राजनीतिक उचितता और अनुचितता से संबद्ध हुए तकलीफ़ों को जीवंत करता है