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इस नाटक में उच्च वर्ग के जीवन के विरोधाभास को उजागर किया गया। वहीं बारिश में अपने घर को ठीक करने के बजाय दूसरे के घरों को ठीक करने की एक स्थिति बाई के किरदार में दिखाई दी। साथ ही मालकिन के बेटे पामोल को दूध पिलाने के लिए उसके पीछे-पीछे दौड़ लगाना और फिर भी दूध नहीं पीना एक रोचक दृश्य रहा। चंद रुपयों की खातिर बाई की मनोदशा परिवार के पालन-पोषण की विवशता को दर्शाती है। वहीं स्वयं के घर में एक गिलास दूध के पीछे दस हाथों की झड़प गरीबी और विवशता का प्रतीक रहा।यह नाटक हमें सोचने पर मजबूर करता है कि हममें से कितने लोग वास्तव में श्रम कि गरिमा का मूल्य जानते हैं और उसकी कद्र करते हैं।