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मुम्बई की लोकल' के भीतर के जीवन को भारतीय समाज, संस्कृति, राजनीति तथा अर्थव्यवस्था के परिप्रेक्ष्य में देखना चुनौतीपूर्ण है। मुम्बई की यह लोकल तेज़ी से बदल रहे समाज की न सिर्फ़ साक्षी बनकर हमारे सामने आती है वरन बदलाव के बीच के समय को समझने में मदद करती है। कविता पढ़ते हुए लगता है कि हम सिर्फ़ ‘मुम्बई की लोकल’ को ही नहीं मुम्बई को देख रहे हैं और दुनिया को भी।