ISBN: 9789350000656
Language: Hindi
Publisher: Vani Prakashan
No. of Pages: 230
सुपरिचित कवि अरुण कमल की आलोचना पुस्तक गोलमेज उनके साहित्य सम्बन्धी निबन्धों एवं टिप्पणियों का दूसरा संग्रह है। गोलमेज, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, वास्तव में साहित्य तथा जीवन के प्रश्नों पर वार्ता, वैचारिक आदान-प्रदान और विभिन्न दृष्टियों, मूल्यों के बीच संवाद का उद्यम है। साथ ही, अरुण कमल के लिए भिन्न-भिन्न युगों तथा प्रवृत्तियों के लेखक मानो एक साथ ही गोलमेज पर बैठे हों। इसीलिए इस पुस्तक का कार्य-क्षेत्रा भी बड़ा हैµ कालिदास और कबीर से लेकर निराला, पंत, महादेवी, प्रेमचन्द्र भीष्म साहनी, निर्मल वर्मा, भिखारी ठाकुर, पाब्लो नेरुदा, नामवर सिंह और समकालीनों तक। किसी लेखक-विशेष या रचना-विशेष पर बात करते हुए भी अरुण कमल लगातार साहित्य के मूल प्रश्नों और विवादों पर बात करते हैं और इस क्रम में संस्कृत-अपभ्रंश से लेकर सुदूर पाश्चात्य òोतों-संदर्भों तक पाठक को अनायास ले जाते हैं। जाहिर है, लेखक के कुछ अपने दार्शनिक और कलागत संकल्प हैं, अपने जीवन एवं पाठ-अनुभवों से अर्जित मूल्य और कुछ हठ भी। कभी-कभी पुनरावृत्ति भी मिलती है, कुछ अपूर्णता और अपसरण भी। लेकिन इस पुस्तक की विशेषता है अरुण कमल की सूक्ष्म अन्तर्दृष्टि, धारोष्ण गद्य और कृति के अभ्यंतर में उतरने का साहस। यह पाठबद्ध आलोचना है। और समाजबद्ध भी। ‘पारचून’ के अंतर्गत संकलित टिप्पणियाँ, जैसी कि पिछली पुस्तक कविता और समय में भी थीं, आलोचना की अनूठी प्रविधि का उदाहरण हैं जिसे हिन्दी में पहली बार अरुण कमल ने सम्भव किया। ये टिप्पणियाँ एक साथ रचना और आलोचना हैं, कवि-कर्म को कर्मशाला में जाकर देखने का उपक्रम और विचार करने की बिम्बात्मक प्रविधि। अंतिम खंड के वक्तव्य स्वयं अरुण कमल की कवि-नीति को प्रकाशित करते हैं। अपनी साहित्य-परम्परा, समकालीन रचना परिदृश्य और स्वयं कवि को जानने-समझने के लिए यह पुस्तक एक अनिवार्य पाठ की तरह है। एक ऐसी गोलमेज जहाँ हर पाठक के लिए स्थान और आमंत्राण है।