ISBN: 9788181436344
Language: Hindi
Publisher: Vani Prakashan
No. of Pages: 140
मैं यह भी कह रहा हूँकि मैं कभी किसी ब्राह्मण को यह समझने में सफल नहीं हो सकता कि मैं क्या कह रहा हूँ। वह ब्राह्मण चाहे कत्त्र्पंठी हो या उदारवादी, सन्यासी हो या गृहस्थ, मार्क्सवादी हो या आधुनिकतावादी, आस्तिक हो या नास्तिक, मांसाहारी हो या शाकाहारी, वेदनिंदक हो या वेदपुजक, काला हो दक्षिण बहरतीय, सगुणवादी हो या निरगुणवादी, पूंजीवादी हो या मजदूर, अमीर हो या गरीब, राजा हो या भिखारी, नेता हो या श्रोता, लेखक हो या पाठक, चोर हो या साहू। मेरी यह बात उस कि समझ में कभी नहीं आ सकती कि जारकर्म बुरी चीज़ है। अतः यह पुस्तक दलित चेतना को जागृत करती है।