ISBN: 9789350007174
Language: Hindi
Publisher: Vani Prakashan
No. of Pages: 214
कुछ लोग होते हैं जिन्हें मालूम होता है, कुछ लोग अचरज करते रह जाते हैं। सन दो हजार दस में चचा और चम्पू मुख़्तलिफ मुद्दों पर अचरज करते रहे और निदान खोजते रहे। आमने-सामने बैठकर बतियाते रहे। अच्छी चीज़ें दिखीं तो हवा, हंसी, हिम्मत और हौसले की हौसलाअफजाई करी और कहीं हतश्री निराश व्यथित होने के बावजूद प्रफुल्ल त्यागी बने रहे। हिन्दी को लेकर भी चचा और चम्पू में काफी संवाद हुआ। कम्प्यूटर के अंडे-डंडे और हिन्दी के फंडे को बातचीत में दोनों ने दोहराया। आनंद आया।