ISBN: 9788170553311
Language: Hindi
Publisher: Vani Prakashan
No. of Pages: 94
‘युगधारा’ से ‘इस गुब्बारे की छाया में’ तक का, बल्कि और पीछे जायें तो ‘चना जोर गरम’ और ‘प्रेत का बयान’ आदि कितबिया दौर से अब तक का नागार्जुन का काव्यलोक भारतीय काव्यधारा की कोई डेढ़ हजार साल की परम्परायें अपने में समेटे हुए है कालिदास से टैगोर, निराला तक और कबीर, अमीर खुसरो से नजीर अकबरावादी तक की सभी क्लासिक और जनोन्मुख काव्य-पराम्पराओं से अनुप्राणित त्रिभुवन का यह परम पितामह कवि चार बीसी और चार सौ बीसी का मजाक उड़ाता हुआ आज भी युवजन-सुलभ उत्साह से आप्लावित है-सृजनरत है। इसका जीवंत प्रमाण है बाबा का यह नया संग्रह ‘भूल जाओ पुराने सपने’। वेदना और व्यंग्य से मिली-जुली अभिव्यक्ति वाला यह शीर्षक आज के युग-सत्य पर जितनी सटीक टिप्पणी करता है, वैसी अनेक सटीक, चुटीली और मार्मिक टिप्पणियाँ इस संग्रह की कविताओं से चुनी जा सकती हैं। यथा ‘‘लौटे हो, लगी नहीं झोल/यह भी बहुत है, इतना भी काफी है’’....