ISBN: 9789350726549
Language: Hindi
Publisher: Vani Prakashan
No. of Pages: 96
तुमने ठीक कहा कि बनारस किसी नये व्यक्ति के लिए एक कैलाइडोस्कोप है। यह आप पर धीरे-धीरे खुलता है। बनारस को वन गो में नहीं महसूस किया जा सकता। यहाँ के जीवन का सुरताल देर से समझ आता है। तुम सच थीं, वाराणसी एक जादुई शहर है, जिसमें मैंने मृत्यु और जीवन को उसके सूक्ष्मतम और विरोधाभासी रूप में देखा है। प्रकाश और अन्धकार का शहर, भगवा चोलों और रंगीन साड़ियों का शहर, नगाड़ों और अजानों का शहर, ऊँची उड़ती पतंगों का और सड़क पर लेटी भैंसों का शहर, रिक्शों की घंटियों और सितार की तान का शहर, उबलती चाय और गरम जलेबियों का शहर, इस शहर से लगाव कर पाने में मुझे वक्त लगा, क्योंकि एक सच्चा लगाव, बहुत से गुस्से, खीज, निराशा-हताशा के पलों से लड़ने, उबरने के बाद ही जन्मता है, यह शहर अब भी चुनौती है। फिर भी यह सच है कि यहाँ आकर लगा नलिनी कि क्षणभंगुरता क्या है और जीवन का सार दरअसल क्या है? मुझे हैरानी हुई जीवन को तो यहाँ के लोग फूंक पर रखते ही हैं, हर समय उत्सव के नशे में रहते हैं, जेब में कानी कौड़ी भी न हो तब भी! मगर मृत्यु को भी यहाँ कितने हलके से लेते हैं लोग...जैसे मृत्यु भी एक उत्सव हो। मैंने माँ की उत्सवधर्मी स्मृतियों को सहेज लिया और ग्लानि का तर्पण कर दिया है। ('अनामा' कहानी से)