ISBN: 9789350007341
Language: Hindi
Publisher: Vani Prakashan
No. of Pages: 120
सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ के निबन्धों का एक अलग तरह का व्यक्तित्व है। उनके लिए निबन्ध लिखना अपने सृजन-कर्म की चिन्ताओं- प्रश्नाकुलताओं को सुलझाना उतना नहीं है। जितना कि समय, समाज, साहित्य, संस्कृति, राजनीति, दर्शन के बदले हुए परिप्रेक्ष्य में उन पर नए सिरे से विचार करना। साहित्यकार होने के साथ वह पत्राकार, सम्पादक, सभा-गोष्ठी के संवाद-यात्रा-शिविरों के आयोजक थे। हिन्दी के इस विवाद-संवाद नायक के पास पके हुए विचारों के अनुभव हैं, अवधारणाओं से उपजे सन्देह हैं और देश-विदेश की विचारधाराओं-आन्दोलनों से कमाये हुए सत्य हैं। इन्हीं विश्वासों, संशयों, अवधारणाओं, बहसों, प्रभावों-प्रेरणाओं को उन्होंने अपने निबन्धों में स्थान दिया है। ‘आजाद-भारत’ में स्वप्नों, संकल्पों, मूल्यों, आस्थाओं, विश्वासों को आग में जलता हुआ पाकर उनकी पीड़ा फूटकर बाहर तर्क के आलोक में आती है। और वह कवि-कर्म, भाषा, परम्परा, संस्कृति, आधुनिकता, भारतीयता, स्वाधीनता, साहित्य, पुराण, धर्म, राजनीति, कला, मिथक जैसे सुलगते प्रश्नों पर विचार करने को विवश हो जाते हैं। ये निबन्ध बौद्धिक विलास नहीं है। नयी चुनौतियों-प्रश्नों के सन्दर्भ हैं। वह निबन्धों में सभी बँधे-बँधाये ढाँचे ध्वस्त करते हैं और कविता, कथा साहित्य की भाँति निबन्ध में नया प्रयोग करते है